Thursday 31 March 2016

ऐ दिल-ए-नादान तू..

ऐ दिल-ए-नादान तू क्यों है परेशान तू.. 
ऐ दिल-ए-नादान तू मत हो परेशान तू.. 

जानकर सभी तू फिर भी बन रहा अंजान तू..
हर वीरान-ए-दिल में क्यों है खोजता जहान तू..
बेवजह ही पैदा कर रहा है ये तूफान तू..
ऐ दिल-ए-नादान तू मत हो परेशान तू.. 

चोट है खाई मगर ऐ दिल न हो उदास तू..
प्यार से भरा हूआ है दिल खुदा-ए-खास तू..
रंजोगम है तुझमें फिर भी साबुत-ए-ईमान तू..
ऐ दिल-ए-नादान तू मत हो परेशान तू..

दिल तेरे चमन में फिर खिलेगा गुल बहार का..
आयेगी बहार कर यकीं खुदा-ए-यार का..
प्यार से भरेगा देख लेना गुलिस्तान तू..
ऐ दिल-ए-नादान तू मत हो परेशान तू.. 

-भूषण जोशी

Monday 28 March 2016

एक अनुभव

दिनांक :- २८/०३/२०१५

आज "रामनवमी" चा पर्व, प्रभु श्री रामांचा जन्म आजच्याच तिथी वर झाला अशी मान्यता आहे.. ऑफीस वरून आल्या नंतर आज सायंकाळी मंदिरात गेलो.. जाताच आरती सापडली.. एक मुलगा निरांजनी अगदी माझ्या समोरच घेऊन आला.. मी सुद्धा लगेच आस घेतली.. खूप छान वाटलं.. अगदी देव प्रसन्न असल्या सारखं वाटलं.. आता काही तथाकथित सेक्युलर पुरोगाम्यांना ह्यात अंधश्रद्धा, अर्थहिनता, देवभोळेपणा वगैरा दिसेल.. पण माझ्या मते मला ह्या मुळे खूप साकारात्मकता मिळाली.. मन प्रसन्न झाले.. हृदयाने नेहमी पेक्षा जास्त रक्त माझ्या शरीरात पंप केले.. Stress एका क्षणात नाहीसा झाला.. Mood एकदम fresh झाला.. खूप आनंद अनुभव करत आहे.. आणि मला वाटते ह्या साठीच आपण देवाच्या दारी जात असतो.. देव काही प्रत्यक्ष तेथे अवतरत नाही पण ह्या रूपे तो आपल्याला त्याच्या असण्याची जाणीव करून देतो.. अर्थातच कुठला दिव्यप्रकाश तेथे दिसत नसला तरी ही वातावरणातील सकारात्मक उर्जा आपल्या मनाला पुर्ण पणे शांत करून आपल्या मेहेंदू वरील तणावाला दूर करते.. त्या साठी कुठलीच टॅबलेट किंवा कॅप्सूल घ्यावी लागत नाही.. असो.. एवढं सांगण्या माघचा हेतू म्हणजे एवढाच कि आपली संस्कृती ही नुसतीच मान्यातेंवर नव्हे तर ताथ्यांवर आधारित आहे.. आणि म्हणून मला माझ्या संस्कृती वर आणि माझ्या आस्तिकते वर गर्व आहे..

जय श्री राम..  

-भूषण जोशी

शायरी

ना मिला कभी फरिश्तों से..
ना देखा खुदा के बंदों को कभी..
नेकि देख कर तेरी ऐ मिसाल-ए-इंसानियत..
अक्स-ए-खुदा का जैसे दिदार हो गया..
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ऐ फनकार-ए-कलम क्या खूब अरमान-ए-बयां है तेरा..
पढकर सिधे दिल में उतरता है हर एक अल्फाज तेरा..
तारीफ से तेरी भर आता है दिल का हर एक कतरा मेरा..
तारीफ में तेरी मुझे हर लफ्ज छोटा लगता है मेरा..
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क्या कहूँ ऐ दोस्त अपने बारे में..
खुदा ने ऐसे फन से नवाजा है..
इंतेजार बस किसी शायर का होता है..
शायरी के झरने मुझसे भी फूटने लगते हैं..
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लिखने गर जाता हूं मैं ना कुछभी लिख पाता हूं मैं..
भीड में अपने खयालों कि खुदको अकेला पाता हूं मैं..
कदरदान जो कोइ आप जैसा मिले तो लिखने से खुदको ना रोक पाता हूं मैं..
बस लिखता ही जाता हूं मैं.. बस लिखता ही जाता हूं मैं..
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ना काबिल-ए-तारीफ हूँ मैं ऐ दोस्त..
नाचीज सा शख्स हूँ मैं ऐ दोस्त..
तोहफा-ए-दोस्ती का तेरे नजराना पाकरके मैं..
काबिल-ए-तारीफ शख्सीयत-ए-खास बन गया..
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उतार देता हूं कागज़ पर युं ही कभी..
खयाल-ए-नेक में आ जाता है जो भी..
मिल जाता है कोइ माहिर-ए-लिखावट आप जैसा..
तो हमें हमारी हैसियत का पता चलता है..
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प्यार सच्चा हो अगर ऐ दोस्त..
तो हदें क्या सरहदें भी पार हो जाती है..
कि हद में रहना भी प्यार सिखाता है..
हदें तोडना भी प्यार ही सिखाता है..

वह प्यार भी क्या प्यार होगा..
जिसमें हदें तोडी न जाए..
कि हदें तो कमजोरी कि होती हैं..
प्यार तो तुफां से भी ताकतवर होता है..
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ना हो बेसबर इस तरह दिलजले तू..
कि मिलने का मजा इंतेजार ही बता सकता है..
भरपेट नहीं पता चलती किमत रोटी की..
पानी का मोल तो प्यासा ही बता सकता है..
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ना हम लफ्जों को ना आपको कम आंकते हैं
हम वोह हैं जो सीधे दिल में झांकते हैं..
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तुम युं हि कभी रूठ जाया करो..
मानाने मे मजा हमें भी बहुत आता है..
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लफ्ज-ए-तारीफ कि ख्वाहिश है आप से..
आप हैं किं इशारा-ए-उंगलि से काम चलाते हो..
मिसाल-ए-बयां ये तो ऐसी हुइ के..
प्यासे कि प्यास दिदार-ए-पानी से बुझाते हो..
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जख्म को युं दिल में पनपने न दो..
आशियाना-ए-दिल को तडपने न दो..
हमारा भी छोटा सा घर है जहां पर..
उस दिल-ए-गुलिस्तां को उजडने न दो..
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रासते चाहे जितने हि आसान हो..
चलने वाले हि मंजिल पाया करते हैं..
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अल्फाजों का सहारा लेकर युं ही..
हम तो कुछ भी बोल जाते हैं..
कदरदान जो हो आप जैसा..
तो नाचीज भी शायर बन जाते हैं..
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ना करो दोस्ती इसलिए कभी..
के दोस्त कभी तो काम आएगा..
दोस्ती वोह तोहफा है खुदा का..
जो टूटने पर भी इनाम दे जाएगा..
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पिरोके लफ्जों को कैसे लिखु मैं..
पसंद तुम्हें हर वोह शेर आ जाए..
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मिलेंगे मौके और भी बुलंदियां छुने के..
सामने खुशनुमा पूरी जिंदगी पडी है..
ना हो मायुस नाकामयाबि से ऐ दोस्त..
के ये तो कामयाबि कि पेहलि सीडी है..
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अल्फाजों को कुछ इस कदर बयां किया आपने..
हर एहसास को दिल में उतार दिया आपने..
गुनहगार हुं लेकिन माफी कि गुजारिश करता हुं..
इस नाचीज का इतना जो इंतेजार किया आपने..

काबिल-ए-तारीफ है हर लब्ज बयान-ए-हुजूर का..
पिरोके जिन्हें गले का हार बना दिया आपने..
सजाके शायरी के गुलिस्तान को एहसासों से..
सुखे पत्ते को भी गुल-ए-बहार बना दिया आपने..
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तारीफ ने आपकी हमें घायल कर दिया..
आपकी सादगी ने हमें आपका कायल कर दिया..
घुंगरू से थे कहीं टुटे पडे हम..
दोस्ती के पैरों कि हमें पायल कर दिया..
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मुहब्बत से यकीं उठ गया हो गर उसका..
बेवफाई का घुंट उसने भी जरुर पिया होगा..
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शायरी में तेरी मुझे मायुसी नजर आती है..
खुशीयों कि तेरे खुदकुशि नजर आती है..
प्यार देकर हमेशा प्यार नहीं मिलता दुनिया में..
एहसास-ए-हकीकत तेरी शायरी नजर आती है..
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चला था मैं बेफिक्र सोचकर..
कि साथ मेरे हैं मेरे हीे अपने मगर..
मुड के देखा तो टूटसा गया मैं..
यादों के साये को अपनों कि भीड समझ बैठा था..
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धोका खाता है हर कोई प्यार में तु ये जान ले..
संभलकर चलना है तुझे भी तु ये जान ले..
प्यार नाम जरुर है दुसरा वफा का मगर..
बेवफाई भी इसी का नाम है तु ये जान ले..
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एक एक शायरी तेरी जैसे एक एक गुलाब है..

हर एक गुलाब तेरा बेहद लाजवाब है..

जिंदगी भी तेरी जैसे खुली किताब है..

पढने वाले भी तेरे दिवाने बेहिसाब है..

उन्हीं दिवानों में एक मैं भी हूं दिवाना तेरा..

है अंदाज-ए-बयां थोडा शायराना मेरा..

सीख रहा हूं तुझसे ही हुनर शायरी का..

मदहोश होके शायरी से भर रहा हूँ मयखाना मेरा..
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ना घबरा ऐ राही तू बढ़ता चल..

सीढीयों पे सीढ़ियां तू चढ़ता चल..

बडे़ नेक इरादे हैं, तेरा ख़ुदा मुहाफ़िज़ है..

आसमां पे आसमां हो, तू उड़ता चल..

ना घबरा ऐ राही तू बढ़ता चल..
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कि आया था बस मिलने मैं तुझसे ऐ दोस्त..

तूने तो मुझे घर में ही घुसा लिया..

दरवाजा खोल के नेक दिल का अपने..

हमेशा के लिए दिल में बसा लिया..
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ना हो मायूस कि मायूसि बहुत बडा गुनाह है..

खुदपर ना हो भरोसा जिसे वो इंसान गुमराह है..

ना छोड़ कशिश-ए-कोशिश ये वक्त भी बदलेगा..

बदल जाना तो फितरत है वक्त की खुदा गवाह है..
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खुशियां हर जर्रे में है बस देखने कि नजर चाहिए..

जी सके जो हर लम्हे को कुछ ऐसा हुनर चाहिए..

कि जिंदगी कि पेहचान जिंदादिली से होती है..

जिंदादिली के लिए खयाल-ओ-खुशनुमा दिल-ओ-जिगर चाहिए..
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दिलोजसबात बयां कुछ इस कदर हो जाते हैं..

अल्फाज-ए-बयान जैसे हर एक रो जाते हैं..

ना चाहे आंसु एक भी बहाना मगर..

याद दर्द को कर अश्क खुदबाखुद बेह जाते हैं..
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-भूषण जोशी
©Copyright

Monday 7 March 2016

तो फक्तं खरा असतो..

कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..
समाज त्याला पागल म्हणतो..
पण बुद्धीने तो बरा असतो..
काहीं साठी तो दगड..
तर काहीं साठी हिरा असतो..
कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..

सरळ मार्गावर चालणारा तो..
गैर वागणे टाळत असतो.. 
अनेक डाग तो पुसत असतो..
कित्येक वार तो सोसत असतो..
स्वतः जळून धधकत्या अग्नीत..
प्रकाश देणारा तो तारा असतो..
कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..

डाग लावणारे ही त्याचेच असतात..
वार करणारे ही त्याचेच असतात..
अश्या बऱ्याच स्वकीय शत्रूंशी..
तो एकटाच झुंजणारा असतो..
कौरवांच्या चक्रव्यूहात अडकलेला..
अभिमन्यू तो बिचारा असतो..
कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..

मान त्याला मिळो ना मिळो..
पण अपमान त्याचा टळत नसतो.. 
मान-अपमानाच्या कैचीत अडकून..
मरता मरता तो जगत असतो..
अन्यायाच्या कडक उन्हाळ्यात..
न्यायाचा तो शीतल वारा असतो..
कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..

पाउलोपावलि संघर्ष करणारा तो..
कुणी Super hero नसतो..
साधा सरळ Common man तो..
लोकांच्या नजरेत Zero असतो..
पण कर्तव्यनिष्ठ तोच Common man.. 
प्रत्येक संकटात साथ देणारा असतो..
कधीकधी माणूस वाईट नसतो..
तो फक्तं खरा असतो..

-भूषण जोशी