Wednesday 21 January 2015

माझी "मधुशाला" (हिन्दी कविता)

कुछ दिनों पहले श्री अमिताभ बच्चन जी के मुख से उन्हीं के पिताजी श्री हरिवंशराय बच्चन जी की प्रसिद्ध कविता "मधुशाला" की पंक्तियाँ सुनी.. अद्भुत एवम् गहन अर्थ से परिपूर्ण.. सुनते ही मेरे अंदर बैठा कवि भी मानो अपने आप ही बोल उठा कि.. 

अमिताभ जी ..

न कभी गया मैं मदिरालय में..
न कभी छुआ मद का प्याला..
किन्तु नशे में हूँ मैं महोदय..
सुन रहा हूँ जो मधुशाला..

 

नशा चढ़ा कैसा ये अद्भुत..
बेहॅक गया मैं भोलाभाला..
हर पंक्ति सुन मधुशाला की..
लगे पी गया मदिराला..

 

सुना मनाती होली प्रतिदिन..
रात दिवाली मधुशाला..
मधुशाला सुनकर के महोदय..
मान गया मैं मतवाला..

 

लगे रातभर पीता रहूँ मैं..
मधुशाला का प्रति प्याला..
नशा भला ये मुझको लगता..
मन-जागृत करने वाला..

 

रस ऐसा है मधुशाला का..
ना भटके कभी पीने वाला..
साक़ी छोड़ मदिरालय को..
मद से मधुर है मधुशाला..

 

मदिरा जीवन ब़दतर करती..
विष का जैसे हर प्याला..
संदेश जीवन का घोल पिलाती..
राह दिखाती मधुशाला..

                                                     -भूषण जोशी                                                       (दिनांक -१९/१/२०१५)

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